सेहत के इस पैमाने पर तो गांव वाले आगे हैं शहरों से

सेहत के इस पैमाने पर तो गांव वाले आगे हैं शहरों से

सेहतराग टीम

केंद्र सरकार अगर राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य योजना का दायरा बढ़ाकर देश की 40 फीसदी आबादी को इसके दायरे में लाना चाहती है तो इसके पीछे कुछ गंभीर कारण हैं। देश में ऐसे परिवारों की संख्‍या बेहद कम है जो कि किसी न किसी स्‍वास्‍थ्‍य कवरेज के दायरे में हैं। चौथे राष्‍ट्रीय परिवार स्‍वास्‍थ्‍य सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि देश में पूरी आबादी को बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य कवरेज देने के मामले में हम आज भी कितने पीछे हैं। हाल ही में जारी सर्वेक्षण के नतीजों के अनुसार देश के सिर्फ 28.7 फीसदी घरों में एक या एक से अधिक सदस्‍य को किसी न किसी तरह की चिकित्‍सा खर्च की कवरेज हासिल है। यानी इतने घरों में से किसी एक व्‍यक्ति को किसी तरह की बीमा, सरकारी योजना या अन्‍य किसी तरह की चिकित्‍सा खर्च सुविधा हासिल है।

शहर से आगे गांव

खास बात यह है कि इस सुविधा के मामले में ग्रामीण भारत शहरी भारत के मुकाबले थोड़ा आगे है। दरअसल शहरी घरों में कुल 28.2 घर इस सुविधा से संपन्‍न हैं वहीं गांवों में 28.9 फीसदी घरों को यह सुविधा हासिल है। वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा संचालित राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजना जिसके तहत अभी 30 हजार रुपये तक की चिकित्‍सा सुविधाएं बीमा के जरिये दी जाती हैं उसने गांवों का ये नंबर बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई है।

राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजना का रोल

दरअसल जिन घरों को सर्वेक्षण में शामिल किया गया था उसमें से 19.5 फीसदी शहरी घरों में एक या एक से अधिक सदस्‍य इस बीमा योजना के तहत बीमित हैं जबकि दूसरी ओर गांवों में यही आंकड़ा 41.3 फीसदी का है। यानी गांवों तक चिकित्‍सा खर्च की सुविधा पहुंचाने में पहले से जारी इस योजना ने बड़ा काम किया है और यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार अपनी नई घोषणा को बस इन पुराने घरों तक ही ठीक से पहुंचाने में कामयाब हो गई तो योजना कामयाब मानी जा सकती है।

धार्मिक आधार पर क्‍या है स्थिति

वैसे अगर धर्म के आधार पर चिकित्‍सा सुविधाओं की बात करें तो सबसे बेहतर स्थिति देश में ईसाई समुदाय की है जिसके 44.6 फीसदी घर किसी ने किसी चिकित्‍सा खर्च कवरेज की जद में हैं। 29.9 फीसदी के साथ हिंदू दूसरे और 22.7 फीसदी के साथ जैन समुदाय तीसरे नंबर पर है। बौद्ध एवं नव बौद्ध 20.9 फीसदी और मुस्लिम 20.1 फीसदी के साथ क्रमश: चौथे और पांचवें स्‍थान पर हैं। यहां ध्‍यान देने योग्‍य तथ्‍य यह है कि भारत में नव बौद्धों में बड़ी संख्‍या दलितों की है। यानी स्‍वास्‍थ्‍य कवरेज के मामले में दलित और मुस्लिम अन्‍य समुदायों के मुकाबले आज भी पीछे हैं।

भविष्‍य की उम्‍मीद

लेकिन स्थिति बदल रही है। पुरानी राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजना के लाभार्थियों में सबसे बड़ा तबका मुस्लिमों का है। इस समुदाय के कुल घरों में से 54 फीसदी से अधिक इसी योजना के तहत बीमा कवरेज हासिल कर रहे हैं। भविष्‍य की योजना में भी अगर बिना किसी भेदभाव के इन सभी को समाहित किया गया तो इस समुदाय को स्‍वास्‍थ्‍य पर खर्च की चिंता से मुक्ति‍ मिल सकती है।

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